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Wednesday, October 2, 2013

सिलवटें






माथो की हाथों की
रातों की जज़्बातों की
सिलवटें

कुछ बिस्तर की चादर पे
कुछ सामाजिक आदर पे
सिलवटें

आती हैं तेरे आने पे
सिर्फ़ मेरे सिरहाने पे
सिलवटें

कभी काँपते होठों पे उभरती
कभी खुलती पलकों में सिमटती
सिलवटें

कल के ख्वाब में
छलके आब में
सिलवटें

जगह जगह टूटी सी
सहलाने पे रूठी सी
सिलवटें

बेछोर कहीं कहीं नपी हुई
तन की मन में छपी हुई
सिलवटें

तेरे सपाट तलवों को चिढ़ाती
मुझसे तुझमें समाती
सिलवटें

सुबह की दुश्मन मेरी
शामों की उलझन मेरी
सिलवटें

सब कुछ सौंपा मुझे
तेरा वो तोहफा मुझे
सिलवटें

तेरी याद दिलाती वो
फर्श पे मुझे सुलाती वो
सिलवटें

कब तक ये दिल कटे
कब तक साहिल बटे
तरतीबी ये फिर हटे
फिर लौट आयें वो सिलवटें
फिर लौट आयें वो
सिलवटें

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