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Wednesday, October 2, 2013

शायद कल



शायद कल नंगे पाँव के नीचे दूब कसमसाए, थोडा गुदगुदाए
शायद कल नहाते वक़्त नाक में पानी, आँखों में साबुन चला जाए

शायद कल गली में घूमते किसी आवारा पिल्ले को नाम मैं दे दूँ
शायद कल किसी और की बात को विराम मैं दे दूँ

शायद कल किराने से बचे छुट्टे पैसों का खजाना ही मिल जाए
शायद कल होमवर्क की छुट्टी का बहाना ही मिल जाए

शायद कल मैं शहर में नई कोई गली ही खोज लूँ
शायद कल मैं फिर खुद को सुपरमैन या ही-मैन ही सोच लूँ

शायद कल फिर किसी छोटी चोट पे बेंड-ऐड लगाईं जाए
शायद कल फिर पापा से नयी कोई टोफी मंगाई जाए

शायद कल फिर दोस्तों के साथ मनघडंत कोई कहानी बन जाए
शायद कल फिर देश प्रेम में सीना तन जाए

शायद कल फिर भाई की साइकिल से गली की रेस हो जाए
शायद कल फिर मम्मी के पल्लू में बहते आंसू खो जाएँ

शायद कल कॉपी में एक गुड कोई दे दे
शायद कल क्रीम वाला बिस्कुट कोई दे दे

शायद कल फिर परिवार पूरा चित्रहार देखने बैठे
शायद कल फिर पापा सर सहलाएं लेटे लेटे

शायद कल बीता हर वोह पल ही आ जाए
शायद वोह कल कल ही आ जाए

शायद...

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