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Saturday, March 24, 2012

तुम आने वाली थी



मैने मन्नतें माँगी थी

मिन्नते की थी

तुमने वादा किया था

तुम आने वाली थी


तुम आने वाली थी तो मैं चुपके से एक बड़ी अलमारी भी पसंद कर आया था

और एक छोटा सा पलंग कि तुम कभी दूर ना रहो

तुम आने वाली थी और हम देसी थर्रा आज़माने का हमारा वादा पूरा करते

पीना छोड़ने पर भी मैं पीता की तुम मुझे बोर ना कहो

तुम आने वाली थी और हम मीडीया के हाथो खिंची 'लिव इन' की लकीरों में रंग भरते

और बस यूँ ही रहते रहते तुम रह ही जाती

तुम आने वाली थी और मैं दरवाज़े पे बैठ तुम्हारी राह देखने का अभ्यास अभी से ही करने लगा था

तुम ऑफीस वाली जो ठहरी, जाने रोज़ कितनी देर लगाती


तुम आने वाली थी पर जनवरी का महीना आ गया

सर्दी आ गयी चली भी गयी

मुझे बुखार भी आया तीन बार

पैसे आए उनका क्या करूँ

पर तुम तुम नही आई


तुम आती तो काटने को दौड़ती दीवारों से शायद फिर याराना हो जाता

तुम आती तो तुम्हारे मंगलवार के बहाने शायद फिर कभी मंदिरों में आना जाना हो जाता

तुम आती तो फिर स्याही पिघल कल्पना के आकार लेती

तुम आती तो फिर दिनचर्या मुझे ज़िंदगी सी दिखाई देती

तुम आती तो फिर बात ही क्या रह जाती

पर तुम तुम नही आई


आया एक फरमान की तुम ना आओगी

तुम्हारा वो एहसान की तुम ना आओगी

साल बाद कहा तो यह कहा

सुन पाए क्यूँ मेरे कान की तुम ना आओगी


तुम ना आई तो मेरे सब बदलाव फिर बदल गये

तुम ना आई तो कुछ साल ज़िंदगी के और फिसल गये

तुम ना आई तो तुम्हारे पापा भी अब ठीक लगते हैं

तुम ना आई तो मन के वेहम अब सटीक लगते हैं


तुम ना आई हो ना आओगी

कब तक मेरी ज़िंदगी से दौड़ लगाओगि

खैर मैं तो भावुक हूँ

मेरी बात दिल पे ना लेना

पर जीना इस बात के साथ

कभी भुला भी ना देना

की तुम आने वाली थी


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