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Tuesday, October 12, 2010

मैंने राम को नहीं देखा

मैंने राम को नहीं देखा
नहीं देखा मैंने उसके काम को
मैंने देखा है तो बस
उसके नाम पे होते हराम को

देखा है मैंने लोगों को घृणा में जलते हुए
देखा है उन्‍हें अज्ञान की कोख में पलते हुए
मैंने प्‍यार के अंजाम को नहीं देखा
मैंने राम को नहीं देखा

क्‍या राम चाहेगा किसी की इमारत गिरे
क्‍या राम चाहेगा कि धर्म के नाम दिल चिरें
मैंने ऐसे इंतजाम को नहीं देखा
मैंने राम को नहीं देखा

क्‍या राम का रावण से धर्म का युद्ध था?
क्‍या राम का मन हिंदुत्‍व से अशुद्ध था?
मैंने रामायण में भी ऐसे कत्‍लेआम को नहीं देखा
मैंने राम को नहीं देखा

राम कब पैदा, कहां हुआ, किसे पता
पर इसी बात पर फोकटियों का झट्ठा बटा
ऐसी यात्राओं के मैंने मुकाम को नहीं देखा
मैंने राम को नहीं देखा

देश को खून की कड़ाही में तलते हैं
जो अपने भगवानों के नारे दिये चलते हैं
मैंने ऐसे तकिया-कलाम को नहीं देखा
मैंने राम को नहीं देखा भाई
मैंने राम को नहीं देखा

मैंने देखा लोगों का खून बहते
मांओं को बच्‍चों के मरने का गम सहते
राजनेताओं की जेबें भरते
एक आम हिंदू-मुसलमान को अपने घर में डरते
क्‍यूं न लड़ूं मैं इनके लिए जो मेरे सामने सांस लेते हैं
क्‍यों मैं जपूं राम नाम जिसकी लोग मन में आस लेते हैं
जो रोक न सका इतने बेगुनाह लोगों को तड़पने से
मैंने उस भगवान को नहीं देखा
मैंने राम को नहीं देखा।

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